चिंता जनक नहीं छोटी चेचक

चिंता जनक नहीं छोटी चेचक

मौसम में बदलाव से चिकन पॉक्स, जिसे आम बोलचाल की भाषा में छोटी माता कहा जाता है, के होने की संभावना बढ जाती है। गाजियाबाद के इंदिरापुरम की वरिष्‍ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्‍टर भारती झा कहती हैं कि यह एक वायल संक्रमण है और बड़ों की अपेक्षा बच्चे इसकी चपेट में जल्दी आते हैं। चिकन पॉक्स या छोटी माता के संक्रमण के लिए वेरीसला जोस्‍टर वायरस जिम्मेदार होता है। अधिकांश मामलों में यह व्यक्ति को जीवन में एक बार जरूर होता है। उसके बाद इस संक्रमण के प्रति व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। इस संक्रमण में हलके बुखार के साथ शरीर पर पानी भरे दाने हो जाते हैं। इसके लिए किसी विशेष प्रकार के इलाज की जरूरत नहीं होती लेकिन यदि बुखार तेज हो, उलटी हो रही हो या सिर दर्द के साथ चक्कर आ रहे हों तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। बच्चों को इससे बचाने के लिए उनके खान-पान का पूरा ध्यान रखना चाहिए। मरीज को सूती कपडे पहनाएं। कपड़ा महीन हो ताकि रगड़ से दाने न छिलें।

एक हफ्ते में दाने खुद सूखने लगते हैं और उन पर पपड़ी आने लगती है। चूंकि यह संक्रामक बीमारी है इसलिए रोगी को अन्य स्वस्थ लोगों से दूर रखना चाहिए। कई बार दानों पर पपडी आने पर लोग सोच लेते हैं कि वे स्वस्थ्य हो गए हैं लेकिन इस दौरान भी उनसे किसी को संक्रमण हो सकता है। चिकित्सक को दिखाएं और उनके दिशा निर्देश में ही कोई दवा खाएं। यदि एक साल से ऊपर से बच्चों को इसका टीका लगवा दिया जाए तो उन्हें इससे संक्रमित होने का खतरा बेहद कम हो जाता है। हालांकि महंगा होने की वजह से कई बार इसे नहीं लगवाया जाता। सरकार के टीकाकरण कार्यक्रम में भी यह शामिल नहीं है।

भारत के गांवों में आज भी इस बीमारी को शीतला माता से जोडकर देखा जाता है और धार्मिक वजहों से बच्‍चों को कई बार चिकित्सक को दिखाने से परहेज किया जाता है। यह साधारण बीमारी है जिसे कई बार लापरवाही के कारण बढा लिया जाता है। रोगी को तरल पदार्थ ज्यादा दिए जाएं तो बहुत फायदा होता है। रोगी के कमरे में किसी  प्रकार का सुगंधित पदार्थ नहीं जलाना चाहिए। मरीज को खुले और हवादार कमरे में रखना चाहिए। यदि इससे संक्रमित हो जाएं तो सार्वजनिक जगहों पर घूमने से परहेज रखें। सामान्यतः सिर्फ बुखार कम होने की दवा दी जाती है। तेज बुखार या सिरदर्द हो तो एंटी वायरल दवा दी जाती है।

आयुर्वेदाचार्य की सलाह, सूर्य की रोशनी से बचें

आयुर्वेद चिकित्सक वैद्य देवेंद्र त्रिगुणा कहते हैं कि आयुर्वेद में इसे मसूरिका कहते हैं। इसके भी दो भेद हैं शीतला और लघु मसूरिका। प्रारंभिक लक्षणों में गले में दर्द और आंखें लाल हो सकती हैं। शरीर में जब कफ पित्त प्रकुपित हों तो यह हो सकता है। यदि मसूरिका हो जाए तो सूर्य की रोशनी से परहेज करना चाहिए। ध्यान रखना चाहिए कि रोगी का कमरो रसोई के पास न हो। छौंक उड़ने से रोगी की खुजली बढ सकती है। कमरा ठंडा और रोशनी धीमी हो। नीम के बीज या पत्तियां, हल्दी और बहेडा तीनों को एक घंटे तक पानी में भिगोएं। छान कर यह पानी पीने से लाभ मिलता है। नमक या मिर्च का सेवन बंद कर देना चाहिए ताकि दाने बिना खारिश के सूख सकें। केसर के कुछ रेशे शहद में मिलाकर दिन में एक बार खाएं। सात से चैदह दिन के भीतर यह दाने अपने आप ठीक होने लगते हैं। मसूरिका में वमन से फायदा होता है। यदि दानों में खुजली लगे तो नारियल के तेल में कपूर डाल कर लगाएं। हुलहुल के पत्तों (पंसारी की दुकान पर आसानी से उपलबध) को चंदन के बुरादे के साथ पानी में उबाल कर ठंडा कर इसे पिएं और लगाएं। मरीज को अलग रखें ताकि संक्रमण न फैले।

घबराने से बढ सकती है परेशानी

होम्यापैथ चिकित्सक डॉक्‍टर ए. के. अरूण कहते हैं कि चिकन पॉक्स या छोटी माता से घबराने से दिक्कतें बढ़ सकती हैं। यह सच है कि इसके लिए कोई दवा विशेष नहीं होती लेकिन यदि यह संक्रमण एक हफ्ते में ठीक न हो तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। कई बार इस संक्रमण से मिलते जुलते लक्षण पर लोग इसे चिकन पॉक्स मान लेते हैं। इस बीमारी में कोई भी दवा चिकित्सक की सलाह के बिना न लें। बुखार के साथ शरीर पर पानी वाले चमकीले दाने हों तो केली मूर-30 की खुराक लेना फायदेमंद होगा। बच्चे इसकी चपेट में ज्यादा आते हैं। कई बार इसी तरह के लक्षण वायरल बुखार में भी होते हैं। यदि सिर दर्द तेज है तो बेलाडोना-30 की दो खुराक ली जा सकती हैं। त्वचा पर रूखापन हो और साथ में तेज बुखार हो तो ब्रायोनिया-30 की दो खुराक से आराम मिलेगा। कई बार बुखार तेज न होने के बावजूद शरीर बहुत गर्म लगता है। यदि ऐसा लगे तो मरीज घबरा जाता है और इससे परोशानी बढ़ सकती है। यदि त्वचा में रूखापन हो तो एकोनाइट-30 से राहत मिलेगी। दानों पर खारिश होने पर रसटॉक्स-30 ली जा सकती है। साफ सफाई का पूरा ध्यान रख जाए और जब तक यह ठीक न हो जाए, उसके कपड़े व बर्तन भी अलग रखे जाएं। कुछ मरीजों को इस दौरान पेट में ऐठन और मरोड़ भी महसूस होती है। इससे बचने का इससे अच्छा उपाय है कि मरीज को ज्यादा से ज्यादा मात्रा में फलों का रस दिया जाए। घर के अन्य सदस्यों को इस संक्रमण से बचाने के लिए वैरीयोलियम-200 की एक खुराक दी जा सकती है।

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